शीतल गिरी । हमरा साहित्यसे कथि मिलल ? ई बात अपनेसे पुछइले त मनके कौनो कोनामे नुकाके रहल आत्मसन्तुष्टि मिलइअ मानो सब किसिमके सुख दुखके भोग अन्तमे आत्मसन्तुष्टि मात्र है । अइसे त स्मृतिसबुन शेष रहइअ । माकिर स्मृतिहबुनके उपलब्धि सब लिखेमे सहज नैखे । साहित्यमे लागल ्र उपलब्धिके चन्द्रनिगाहपुरके अतीत खोजेवाला सूत्र मानले छी हम ई रचनामे । रौतहटके ्र माटीके सुगन्धसे रौतहटके बारेमे लिखेके लेल हमर अन्तस्करणसे झिझोरल। रौतहटके बार मे पुस्तक तयार करेके कम सपना देखले नरही । लिखेकेलेल हमे बाल्यकालसे ही निमन ्र लागइत रहे । माकिर कथि लिखेके, ई बात बहुत बादमें हमरा तनका तनका मालुम होए ्र लागल । चन्द्रनिगाहपुरके बारेमे लिखम कहके विचार बनावल बहुत समय भेल, कहाँसे ्र सर करु कुछो सुझाइबे नकरल । हमरा इतिहास मन परहइअ मुदा वर्तमानके ्र स्वरूप साहित्यमे लिखेके मन नलागल । वर्तमान स्वरूप मातर ही त चन्द्रनिगाहपुर नइखे। ्र तथ्यके नजदिक होके लिखेके सामान्य बात नइखे ओहीसे सामग्रीके खोजीमे हम बौअइली। माकिर हम अतीतमे पहुचली आउर शीर उठाके अब त लिखम कहके चारोओर खोजली। ऊ जगहमे त चन्द्रनिगाहपुर ही नरहे, एकर बारेमे कैसे लिखाई ? हमरा चाँदीके पश्चिमी किनारपर मोतीपुर हात्तीसार मिलल, बस हमरा समस्या समाधान होजाई जैसन लागल । मोतीपुरके सडके सडक गेलापर रजपैडा, जुडीबेला आ पौराई गाँओ मिलल, पछिमओर ताकलापर गैंडाटार, मकवानी चिनो मोथियाही आ सन्तपुर भी देख्लापर अब लिखेसकम कहके मनमे विश्वास जागल । खुसीसे हम मदगदभेली। हम आँख उठाके देखली त नेपालके शासन अभीअभी वि.सं.१९५८ मे श्री ३ चन्द्रशमसेरके हातमे गेल रहे । श्री ३ चन्द्रके योग्यता कतना रहे, अपन जनताके सुविधा देलेरहे अइसन विषयमे हमरा रुचि नहै, हम त उनकर सती प्रथाके अन्त आ दास विमोचन कार्यके सत्य ठानइछी आ सलाम करइछी। हम सोचले भी नहरी कि हम चन्द्रनिगाहपुरके बारेमे लिखे बैठम। श्री ३ चन्द्रशमसेर जङ्गबहादुर राणा सती प्रथाके अन्त नकैले रहस् त अमानवीय रूपसे बहुत पिछेतक भी महतारी सब सती बनल बेटा सब टुकुरटुकुर ताकल नजर परइत । अनाथ विधवा सबके, धन सम्पत्ति हडपेके लेल, उनका मरल मरदके साथे दनदनाएल दन्कल चितामे जबरजस्ती डालेवाला बर्बरतापूर्ण सती प्रथा धर्मके नामसे चललरहे जे चन्द्रशमसेरके निगाहसे रोकाएल । हम कृतज्ञतावश धन्यवाद देवे चाहैछी चन्द्रशमसेरके जौन कानुन बनाके सती प्रथारूपी पैशाचिक कृत्यके विधिवत बन्द करल । हम त मानवीय मन भेल मानवके उद्धारक चन्द्रशमसेरके निगाहसे बसल चन्द्रनिगाहपुके बारेमे लिखेमे मन कएलाके कारण हम सोचमे परगेली। सबसे गम्भीर आ अनिवार्य बात त चन्द्रनिगाहपुर कैसे आ कहाँ बसल ई बात पत्ता लगाबे चाहैछी । खासमे चन्द्रके निगाहसे बसल जगह कौन है। यानी ऊ जगह कहाँ है, कौन रूपमे है। एठियाँ सायद कौनो व्याख्याके आवश्यकता नहए। चन्द्रशमसेरके निगाहसे सं १९८१ मे दासप्रथा टुटल । अमलेख गएलगेल दाससबुनके भिक्षाखोरीके जङ्गलमे बसोबासके व्यवस्था कयलगेल । अइसे त कुछ वरिष भेल पश्चिमी नेपालमे अवशेषके रूपमे रहल कमैया प्रथाके भी उन्मूलन कयलगेल रहे । माकिर मुक्त कएलगेल कमैयासबुनके लेल राज्यसे निमन व्यवस्था अभितकले करे नसकले है। अउर अभितकले नेपाल सरकार समक्ष भी पीडित कमैयासब आपन फरियाद राखैत हए, ई अनुचित भी नइखे । हम सोचैछी चन्द्रशमसेर अमलेख कएले दास आ दरबारके लडकीसबसे जन्मल बाबुके पता नलागलसबुनके बसोबास कएल अमलेखगन्जमे भी सब कोई रमे नसकल । अभीके कमैयासबुनके जैसन अमलेखगन्जमे जगह मिलल दरबारके लडकीसबसे जन्मल सब भी चन्द्रशमसेर समक्ष फरियाद लेके गेल । माकिर चन्द्रशमसेर नेपालके राजनीतिक पार्टीके नेता जैसन नरहे । ूठीक हए, दरबारमे हुर्कल बढल तोहनीके अमलेख कयलगेलाके साथ मिलके बसे नचाहछी। ओकनीसबुनके छोटका बुझलई आ दोसर जगह बैठेके इच्छा हमरा हजुरमे जाहेर कलई । हमरा निगाह भेल, तोहनीके गुजरान होखे गह ोके मरा हजमे ाहेर करिह।“ गुजरान होखेवाला जगह खोजेके लेल फरियाद करेवाला ऊ समूह एक दिन निकलल । चार कोसे झाडीके अवलोकन करइत गेलापर एक दिन मोतीपुर हात्तिसारसे पछिमके स्थान ओकनीसबके अँचल । सखुवा, कर्मा, जामुन साथे पट्टेर आ सिन्धुरेके बुट्यानसब कटानी कर मे भी सहज होई, तीन सरकार सिकारमे आएल समयमे सहजही दर्शन लाभ भी होई ई बात सोचके अनन्त कालतक इहे जगहमे बसेके इच्छा श्री ३ हजुरसमक्ष जाहेर कएलगेल । पैतीस परिवारके लेल बसोबासके स्वीकृति मिलल चन्द्रशमसेरके निगाहसे । इहेलेखा चन्द्रनिगाहपुर चन्द्रशमसेरके निगाहसे बसल बस्ती हए( ई सत्य हएं। ई प्राचीन बस्ती मोतीपुर हात्तिसारसे करिब आधामिल पछिम आ कुछ उत्तरमे रहे जौन आज नइखे माकिर ऊ जगह आज भी अगलवगलके खेतसे ध्यान पूर्वक देखलापर कुछ उचाइ मिलइअ । मोतीपुर गाँओ पुराना हई कि हात्तिसार कुछ कहे नसकम । राणा शासनके संस्थापक जङ्गबहादुर राणा ई क्षेत्रमे सिकार खेलेला आएलाके बखत रजपैडा गाँओ बसल नरहे । राजा (राणा)के सवारीके लेल बनावल पडा (बाटो)के वगलमे बसोबास कएलसबके गाँओ हए रजपैंडा । रजपैंडा बसल रहे त सिकार खेलेके समयमे लावा लस्करसे जङ्गबहादुर भूतलाके पौराहीके जङलमे रात गुजारेके नपरइत । हम गैंडाटार पुगे चाहइछी, ई.सं १३२६मे आकर्षक, सम्पन्न आ सुदृढ सिम्रौनगढ राज्य दिल्लीके तुर्क बादशाह गयासुद्दिन तुगलक ध्वस्त कएलापर ऊ नगरसे विस्थापित भेलसब गैंडाके भगाके बस्ती बसएलक काहेकि ऊ पुरान गाँओ त्रिभुवन राजपथ बनेसे पहिले, महेन्द्र राजमार्ग निर्माण होएसे पहिले व्यापारके केन्द्र रहे । कवनुर, न्धुली, ललितुरतक नुन, कपडा, भेली(सख्खर, लेजाएवाला, बेचेवालाके हम भेटले रही खोजलापर अभी भी मिलसकैय । पहाडके तलहट्टी कछाडमे निमन बजार गैडाटार रहे कहलापर कतनाके त विश्वास भी नहोइअ। राजमार्ग होएलापर चन्द्रनिगाहपुर आवाद गुल्जार होतेगेल माकिर गैंडाटार दुवरातेगेल । मानों विकासके पूर्वाधार सडक पाएलासे चन्द्रसे निगाह भेल जगह आज चन्द्रशमसेरके नाओ अमर पारलक आधुनिक चन्द्रनिगाहपुर । सडक अभावसे गैंडाटार रोगी बनल, सुविधा पाएलासे ई दिन दुना रात चौगुना प्रगति करते जारहल हई । आधुनिक चन्द्रनिगाहपुरके वास्तविक कर्मीसब महलमे खोजलापर नमिलइअ, झोपडीमे झाकलापर मिलइअ, श्रम खर्च कयलनके अनुभव सङ्कलन कएलापर चन्द्रनिगाहपुरके व्यथा थाहा होइअ।। ऊ अतीत अभी मीठ लगला पऽ भी भुक्तभोगीके लेल जरुर बहुत कडवा तीत रहे । चार कोसके जङलमे मच्छड खुन चुसके कतेकके प्राण हरलेल, साँप, विच्छीसे कतेकके प्राण हर ण भेल, कतना गेंडा हात्तीके गोडसे दबाके, बाघ भालु चितुवाके सिकार भी बहुत भेलन, सर कारके जङली कानुनमे बन्हाके कतनाके घरबास बिलायल । चन्द्रनिगाहपुर खोजते गेलापर सिन्धुली बागमती किनारसे आएल सुकराम दनुवारसे भेटभेल । २०११ सालमे बागमती लहलह लहराएल हराभरा फाँट दहएलापर बसाइ सरनाइ स्वाभाविक भी रहे । बाँचेके लेल बसाइ सरल १४ घरके दनुवारमेसे एक हए सुकराम । सुकराम चारकोसके झाडी फाँडल अनुभव सँगालले छतन आ अभीतकले सुनावते छतन । बाघ, भाल, गेंडा, हात्तीके बिगबिगी, उपरसे मलेरियाके त्रास(सुकरामके याद आयल, पहाडसे झरल तामाङ्ग, मगर, गुरुग, क्षेत्रन ११ साले २०२८ सालतक बहएल पसेना आ खून । ओकनीसबके मेहनतमे अडल हए आधुनिक चन्द्रनिगाहपुरके जग। चारकोसके झाडी फँडानी करेवाला दनुवार, तामाङ्ग, मगर गुरुङ्ग, क्षेत्रीसबुनके अमोद्य शक्तिसे विरान जङल आवाद होए सकल । बडका बडका गाछ, झाडीझडी फंडाएल, मानव श्रमसे प्रकृतिके पिछे धकेललदेल । घनघोर चारकोसके झाडी फँडानी करेवाला असम्भव कार्य सम्भव भेल । एगार सालमे चाँदी अभीके स्थानसे ७०० मिटर उत्तरमे हर्दिया खोलामे मिललरहे, यानी अभीके खैरा आ चिडियादह दुगो भू(भाग नहोके एकेगो रहे । दनुवारसबुनके आबाद कएल खैरा अभी बरबाद हए। प्रयत्न प्रारम्भिक चन्द्रनिगाहपुरके विषयमे लिखेके रहे । चाहना त हए तत्कालीन दनवार सबनसे भलाकुसारी करेके । चिरइसबके बासस्थान सिमसार, आज चिडियादहमे परिणत भएल हय । आज सिमसार, दह आ चिरइ नइखे( हय त आदमीके बहुत मकान चारोओर । भारतके आसामतरफ लाहुर जनाइ ऊ समयमे स्वाभाविक रहे। ओइसन मानसिकता बनावल तामाङ्ग, मगर, गुरुङ्ग आ क्षेत्रीसबनके छविलाल राना मगर रोकके खोरिया फाँडेमे प्रेरित कएलेरहस । यिलेखासे प्रेरित कएलगेल करिब एक सय आदमीके शारीरिक श्रमसे खोरिया फंडायल। गाँस बासके सवाल आदमीके लेल अनिवार्य होखले। ओ समयमे खोरिया फाँडेवाला बहुतजने दिवङ्गत भेगेल । छविलाल राना मगरके भी शारीरिक श्रमले बनल हय( झनझनीया टोला। गाँस(बासके सवाल ही आदमी अपन जनमधरती आ आफन्त छोडले। बाँचेके स्वार्थसे अपन आ परिवार मातर देखइअ । खोरिया फाँडेवालासबके महमे माड लागलापर भी, आर्थिक अवस्थामे खासे सुधार नआएल हए। मालपोतके बहिदार दुर्गाबहादुर श्रेष्ठ भी खोरि या फंडानी करएलन । सरकारी कर्मचारी ब ासके बस बाएल ात सरकारके निन लागल । ँडानी कराके खोरिया आपन नाओमे समेत दर्ता कराबेकेलेल बिन्तिपत्र देदेलन । ई क्रममे उनकर जागिरके बात छोडू बन मासल मुदा भी लागल । पक्राएके डरसे दुर्गाबहादुर श्रेष्ठ परिवारसहित भारतके डिम्बापुरमे भागके गेलन । दुर्गाबहादुरके जागिर गेलासे की भेल? हनकर ना त चन्द्रनिगाहपुरमे अजरअमर हई। हुनकर फँडानी कराएलक जगह आज चन्द्रनिगाहपुरके नाक बनगेल हए । एकदिन हम दुर्गा चोकमे घर रहलं साहित्यकार रमेशमोहन अधिकारीसे दर्गा चोक नामकरणके बारेमा पछले रह । तीन दशक पहिले बसाइ सरके आएल बबुआ रमेशमोहनके इतिहास का मालम ? हन फटाकसे कहलस’चौकपर दुर्गाके मूर्ति बनाके दसहरा पूजा करहइअ ओहीसे दुर्गा चोक भएल हई।’ खोरिया फँडानी करेवालाके पूरव(पश्चिम राजमार्ग बनी कहके कहाँ मालुम रहे, ऊ जगहपर चोक बनी इहो मालूम नरहे, आ अभीके बहतके पहिलेसे ही ई जगहके नाओ दर्गाप रहे कहके भी मालुम नइखे। प्रायशः लोगसब वर्तमानकेसाथ मतलब रखहइअ । दुर्गा बहिदारके सहकर्मीसबुन इमानदार र हे ओहीसे अगुवाके नाओमे टोलाके नाम राखदेलई। फँडानी करेवालाके जग्गा दर्ता कर विखातिर प्रयत्न करेवाला दुर्गा बहिदार निर्धन त रहे माकिर उनकर नाम कौन मेटासकी आज ? दुर्गा बहिदारके निर्धनता सहकर्मीसबुनके साथसे सार्थक बनल हए । बडका शरीरके रहे नरबहादुर गुरुङ्ग लोगसब उनकाके उपनाम राखदेलन कप्तान । पहिलेके जमाना रहे, बडका शरीरके एगो कप्तान गौरमे भी रहे । भालके पटकके या भालजैसन लगलासे भालु कप्तान नामले प्रख्यात रहे हुन। ओहीलेखा सेनामे नोकरी नकएले नरबहादुर गुरुङ्ग चन्द्रनिगाहपुरमे कप्तान बनलन । एतने न उनकर फँडानी कयल जगहमे बसल टोलाके अभिले कप्तानटोल नाओ ल। ुर्गा बहिदार क फँडानी काएल ुर्गापुर खोर जहा बलमपाखी मगरसब बसल रहे( ऊ बलमपाखी टोला बन गेलहई । साधारण लोगसबुनके खोरिया फँडानीके समयमे भरण(पोषणके समुचित व्यवस्था नाइके करइतरहे। सीधासादा किसान त घटवारके नाओ सुनतेही भागजाइत रहे ओ समयमें ! मर्यादापालन कर वालाबात आजके जैसन अस्थिरता नरहे । ई पङ्क्तिके लेखक ठाडाटोलमे पहुचल हए। सुधा ठाडा मगरसबुनके श्रमसे आवाद भेल टोला रमणीय है। टोला निर्मातासबुनके खोजेके परी ८ फँडानी करावेवाला आ फाँडेवाला मातर रहे । कलकत्तासे कमाके आके गौरमे घर बनाके बसेवाला प्रेमजङ्ग शाहीके नजरमे चन्द्रनिगाहपुर परल । अभीके बजार टोला रहल जगह हुनकर आवाद कराएल हए । कलकत्तामे कमाएल ढेउवासे हुन ऊ जगहके जिमदार भी बनलन । जग्गा आवाद करेसे पहिले भी आवाद कयल जग्गा उपभोग करेमे बहुत कठिन बात रहे । ओहीसे श्रम खर्च करेला कतेक त जङल फँडानी कके सुन्दर मानवबस्ती बसावेवालासब कातकातमे बसल हई, पहिलहीकेलेखा दयनीय स्थितिमे । ओकनी सबमे विशेषकके श्रम कएलसबुनके रामकहानी पाठक समक्ष राखेके आवश्यकता नइखे । श्रम कर वालाके जीवन जइसे तइसे कटल आ कटरहल हई। २००१ सालमे पौराहीसे टलकबहादुर घिमिरे चन्द्रनिगाहपुर काहे और कैसे पहुचल ? कौन ्र प्रेरणासे पौराहीके घरमे लरिकासब छोडछाडके, टांगी आ खुर्पाके भरमे पराक्रम देखाइत कतेक रात त बडका कर्माके गाछमे बनल खोहमे बसल । ओ समयमे ओहीलेखा जमिन देलापर भी दोसर जगहसे बसाइ सरके मलेरियाके घर चन्द्रनिगाहपुरमे बसेके लेल कोई ्र तयार नहोइत रहे । चन्द्रनिगाहपुर आवाद करेवालासबके लेल २०१८ आ २०२२ सालमे आएल नापी घर परिवार सङ्ख्याके आधारमे साढे चार विघातक एक रिारके विर यले हे । जग्गा डानी करेवालासब नापी नापके देल जमिनपर निर्भर रहे । चन्द्रनिगाहपुर के रामकहानी अभितक बाँचल बुढपुरान जिते अपन(अपन अनुभवमे बतावइअ, जौन रोचक हए। नापी नापीकके देले जमिन तीन वर्षतक बेचेके नमिलइतरहे आ ओकर मालपोत भी तिरेके नपरइत रहे । इहे सर्तनामामे सही कराएल अनुभव टलकबहादुर घिमिरेसाथ हए। खोरिया फँडानिकएल जमिन सहजही नापी नभेलरहे, बन मुद्दामे बहुतजनेके पकडल गेलरहे बन अया, एकबेर त ३९ जनाके पकडले ललितबहादुर घिमिरे बतावलन । २००१ सालसे २०२१ सालतक खोरिया फाँडेवालासबुन चन्द्रनिगाहपुरमे न त व्यवसायी बनसकल न त उँहाके आदमीसब ओकनीके नीमनसे लगत ही राखेसकल( अभीले चन्द्रनिगाहपुर सप्तरङ्गी रङ्गमे रङ्गायल हए आ अपनेमे मस्त हए अतीतके कातमे रख के । पहाडसे विभिन्न कारणसे जीजिविषाके खोजीमे झरल सर्वसाधारण सामान्य आदमीके पुरुषार्थसे आवाद भेल जगह हए चन्द्रनिगाहपुर । तराईके जीवनकेसाथ निमनसे परिचित नभेल पहाडियासबके सुन्दर बस्ती रहे चन्द्रनिगाहपुर । पहाडी पहिरन, चालचलन, सामूहिक सद्भाव आ सहयोगके साकार रूप बनलरहे चन्द्रनिगाहपुर । कुछ करेके चाही यैसन भावना, मिहिनेतके सकारात्मक परिणाम है, चन्द्रनिगाहपुर । खोरिया फंडानी कके चन्द्रनिगाहपुर गुल्जार कराएवाला पहाडसे फरक भूगोलमे, अन्यौलके वातावरणमे, नौलो जीवनमे घुलमिल करे जौन नसकल वकनीसब विस्थापित भेल । माकिर जब महेन्द्र राजमार्ग बनल चन्द्रनिगाहपुरके कुछ भुलाएल कि ? हो सकैय गाउके सभीन बजारीकरणके स्वाद आ नशामे अपनपन गुमाएल होतन् । सडक बिस्तार करल बजार गाँउक लोगके मानसिकतामे आर्थिक प्रणालीमार्फत् स्वार्थ भरदेलइ । बाँडेचुडके खाइतरहे फलफ, तरकारी, सिकार कके मार जनावरके ास, रा मकै बजार ्र मे बिकेवाला वस्तमे परिणत भल। यस व्यवहारस मेहनती आ चलाख लोग कह चलाख लोग कुछ नगुमाएलन सासर कमाइ सरेसकल । दिन प्रतिदिन बजारीकरण बढ्ते गेल, साथे खोरिया फा‘डेवाला गाँरके परनका लोगसब महङ्गीसे जेकर जीवन कष्टकर बनायल( ओकती विस्थापित दोखेके क्रम भि बढल । हमरा लागैह रगत पसिना आ परिवारके सदस्य समेत गमाएल लोगसब जउन बसाई सरेके नचाहइत रहे, तब भी इच्छा नहोला पर भी जाएकेलेल बाध्य भेलन।
खास कके खोरिया फंडानी करेवाला मतवालीसबुन बजारीकरणके वातावरणमे छक्का पंजा करेके लुर नरहलासे विस्थापित भेल । सुरा सुन्दरी, जुवा, तास आ सिकारके सौखिन बलमपाखी टोलके ठोकरबहादुर सिंजाली जैसन बढेत बजारीकरणकेसाथ सङ्घर्ष करे नसकलासे शेष बचल जाय जेथा बेचबाचके बसाई सरेकेलेल बाध्य बनल । नाच, गान, मनोरञ्जन मानव जीवनसाथे जोडाएल है। यीहे सम्बन्ध साधना गरेकेलेल सुनथाने पहरी, लरे पहरी, राजवीर पहरीसब मादल बजाइत रहे, लोकगीतमे मारुनी नचाइतरहे, सोरठी, ख्याली, झ्याउरे आ दोहरी गीत घन्काके नयाँ जगहमे रमाइत रहे।
सबुन लोग अपन जगहमे अहंमन्य होखलै । कर्मके कम आ मनोरञ्जन आउर मोजमज्जामे ज्यादा आशक्ति बनेमे विस्थापित होएकपरी । जउन शहरीकरण आ बजारके साथ घुलमिल होए नसकइ, बजारके बदलल चाल आ कदमसँगे परिवर्तन नहोअइअ, देर सबेर विस्थापित होइबेकरी । समय परिवर्तनशील है, परिवर्तित समय अनुरूप लोगके सोचाइ, व्यवहार, संस्कृति, नैतिक मूल्य, मान्ता, चालचलन आ आनीबानीे समेत र र्न आबइअ । पुरान संस्कृति आपसे प विस्ृत होते जाइअ । बजार हाट आ मेलामे देखाबेवाला लकडीके बक्सामे पोस्टर देखके भरपुर आनन्द लेवेवाला चन्द्रनिगाहपुरके नागरि क अभि घरमे टेलिभिजनमे टेली सिरियल, सिनेमाके विभिन्न कार्यक्रम देखके मनोरञ्जन प्राप्त करहइअ साथे ज्ञानगुनके बात भी सिकरहल है। आमसञ्चारमे आएल परिवर्तनसे देहाती पारामे देखाएवाला नाटक, सांस्कृतिक कार्यक्रम, मेला पर्वके प्रचलन लोपोन्मुख होते जा रहल है । आ अभिले लोगसबुनके मनोञ्जन प्राप्त करेके साधन, तरिका, रूचि आ छनौटमे समेत बहुत बडका अन्तर देखापरल है । व्यापारके क्षेत्रमे स्वार्थके नियम लागु होखलै । भारतके बैरगनियासे गाडामे ल्याएल निमक यहीके रस्ता होके मकवानपुरके पहाडी बस्तीमे पुगइत रहे।
अइसे त ओह समयमे गाउँमे सवारीके साधनके रूपमे लकडीके गाडा आ घोडाही ्र देखलरहे । ’महेन्द्र राजमार्ग’ खुललापर पहिले पहल ‘मटर गाडी’ आएल बेरिआमे गाँउकेलोग मेलालेखा भीड लागल बात खड्गबहादुर दर्लामीके मालुम है। चन्द्रनिगाहपुरके घरसब खर बाट, खपडा(टायल होतेहुए पक्कीमे परिणत होरहल है। खोरिया फँडानीके समयमे सन्तपुर के ठगा खाँ थारूके लत्ताकपडा, तेल, मट्टितेल, नुन लगायतके सबकुछ मिलेवाला दुकान रहे । नौ दस सालकरिब चन्द्रनिगाहपुरके चारोवर मिल नरहलासे ढेकी आ जाँतसे नसकलापर पिसानी कुटानीके लेल समनपुरके मिलमे जाइतरहे । बादमे विश्रामपुरमे मिल जडान भेल । उन्नाईस सालके करिक सन्तपुरमे भागवत चौधरी मिल लगाइलापर चन्द्रनिगाहपुरकेलेल बहुत सुबिधा भेल रहे । मेसिनके परयोग बढ्तेगेलसे लोगके मेनत करके च्छा मि होइतगेल । सरसामान केकेलेल डुरिया बजारतक जाइतरहे चन्द्रनिगाहपुरके लोग २०२२।०२३ सालसे बजार टोलामे सोमबार आ शुक्रबार हाट बजार लगावे लागल । ऋापन अलग अस्तित्वकेसाथ जिरहल चन्द्रनिगाहपुर २०१९ सालतक जुडिबेला गाँउ पञ्चायतके एगा अश ही रहे । २०१५ सालके संसदीय निर्वाचनमे मतदान करेकेलेल चन्द्रनिगाहपुरके बासिसब जुडिबेलामे रहल बुथमे पहुचलरहे। (२०२० सालमे चन्द्रनिगाहपुर जुडिबेलासे अलगहोके अपन अलग अस्तित्व देखावे सफल बनल । नथुनी मियाँ जोते चाहल ऐलानी जग्गा रोकके आ उनकर बनावल मडई तोडके छविलाल राना मगरके विशेष पहलमे २०२२ सालमे ज्ञानके ज्योति फैलाएवाला जन ज्योति प्राथमिक विद्यालय स्थापना भेल । उहे समयसे प्रगति करैत अभि जनज्योतिमें स्नातक तहतकके पढाइ होखइ। रौतहटके बलुआ अकोलवा प्रा.वि. २००४ सालमे स्वीकृति प्राप्त भेलापर भि अभितकले जैसनके तैसन है( चन्द्रनिगाहपुर शिक्षाके माहतम बुझलइ आप्रमात पथमे आगे बढलई । कुछ समय पहिलेसे चन्द्रनिगाहपुर सञ्चारके सुविधा भोगरहल है । चन्द्रनिगाहपुरके प्रगतिसे अगल बगलके अस्तित्व फिका पारल प्रतीत होअइअ।
र मूल्य आ मान्यतासे मनमे डर बसाले नसकले है, बजारमें मुन्द्रेसबके दादागिरी बढइत जा रहल है। स्फूर्ति अनुभव कररहल चन्द्रनिगाहपुर व्यक्ति स्वार्थ(संग्रह त्यागके आत्मविसर्जन तरफ बढरहल लौकइअ । कालके स्वरूप आज नइखे । सुविधाक साथसाथे सङ्कटके अनुभव बढ्ते जारहल है। अनुभवसे चन्द्रनिगाहपुर बहुत कुछ सिकल ह जौन मिलजुलकर प्राप्त हो सकइह, मिलजुलकर भोग करसकइह, वह असहज नबइह । यकर विपरीत दोसराके अपमानकके मिलेवाला म्मानसे पने बडका, निर्धने धनीक अम्स बहुके नरसे गिरलापर स्वयम् अस्तित्वहीन बनजाइअ। दोसरके प्रगतिसे पाठ नसिकेवाला ्र दिक्दार होअइअ आ धिरेधिरे हासतरफ लागैअ । यैसन लागैअ महत्वाकाङ्क्षा ज्वलनशील ्र वस्तु है आ ओहमे कुप्रवृतिसब जरके राख बनहिय, यहिसे यिहे प्रक्रियामे रहल महत्वाकांक्षी चन्द्रनिगाहपुरके अभिनन्दन ।
चन्द्रशमसेरके निगाह
[sharethis-inline-buttons]